खेल का खेल निराला -डॉ आनंद
खेल का भी खेल सामंतशाही है
डॉ आनंद प्रदीक्षित
(पूर्व आईएएस समकक्ष प्रशासक)
वास्तव में खेल एक सामंतशाही ,जीतने की अदम्य लालसा से प्रेरित एक क्रिया है ।यह समाजवाद के विरुद्ध सदियों से खड़ी हुई साजिश है क्योंकि खेल में प्रत्येक व्यक्ति जीतने के लिए खेलता है ना कि कोई समानता लाने के लिए ।यदि शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए खेलना हो तो हार जीत की बात नहीं होनी चाहिए जैसे कि मैदान के चक्कर लगाना घुड़सवारी करना व्यायाम करना अथवा और बहुत सी क्रियाएं करना जो जिम में की जाती है ।किंतु जब दो पक्ष आमने-सामने होते हैं तो लगभग सभी खेलों में एक ही बात होती है एक पक्ष की गेंद होती है और दूसरे पक्ष के बहुत से लोग मिलकर उसे लक्ष्य तक जाने से रोकते हैं ।गलतियों पर खामियाजा भुगतना पड़ता है ।यह एक क्रूर भावना है और इसका प्रमाण हमें फुटबॉल के बहुत से मैचों में मिलता है जहां रक्तरंजित मैदान यह बताते हैं कि यह खेल कितने क्रूर इतिहास छुपाए हुए बैठा है ।बहुत से खेल पशुओं को भी शामिल करते हैं जैसे मेटाडोर का खेल अथवा भारत के ही दक्षिण में खेले जाने वाले कुछ खेल। कुश्ती पहलवानी बॉक्सिंग के खेल जिनमें खिलाड़ी रक्तरंजित हो जाते हैं। उद्देश्य केवल अपनी प्रतिष्ठा संसार के सामने उजागर करना और दूसरे को नीचा दिखाना है ।खेल भावना एक बिल्कुल झूठी अवधारणा है ।खेल भावना के लिए यह कहा जाता है कि हारने पर दुख ना हो लेकिन ऐसा कौन कौन सा खिलाड़ी है जो हारने पर दुखी नहीं होता ?कितनी हारने वाली टीम जश्न मनाते देखी गई हैं? जीतने वाले खिलाड़ी फॉर्मल बधाई देते हैं और हारने वाले खिलाड़ीखिसियाये हुए मुंह से वह बधाई स्वीकार करते हैं। यही नजारा हर जगह दिखाई देता है ।खेलों में कोई खेल भावना नहीं है। केवल सुप्रीमेसी ,अपनी उच्चता प्रदर्शित करने की भावना है। चाहे शारीरिक उच्चता हो अथवा खेल की चतुराई अथवा नियमों का ज्ञान अथवा मैदान की विशेषताओं को समझ कर उसके अनुरूप खेल सकने की बुद्धिमत्ता दिखाने वाली भावना हो लेकिन कुल मिलाकर खेल केवल एक क्रूर सांड युद्ध के अलावा और कुछ नहीं है जिनमें सब खिलाड़ी दूसरे पक्ष को हराने के लिए हर संभव हथकंडे अपनाते हैं ।यद्यपि इसके नियम बना दिए गए हैं फिर भी यह क्रूर भावना है, सामंत शाही भावना है ,पूंजीवादी भावना है ।
खेल पैसे के लिए खेला जाता है मैच फिक्सिंग भी होती है लोगों का मस्तिष्क हैक कर लिया जाता है और वह सिर्फ खेल ही देखना चाहते हैं। खेलों से ज्यादा निकृष्ट समय बर्बादी और कुछ नहीं है। शरीर व्यायाम से कसरत से बलिष्ठ रह सकता है स्वस्थ रह सकता है इसके लिए किसी को हराने जिताने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं खेलों के स्पष्ट विरुद्ध रहा हूं और मैंने गंभीरता पूर्वक डिसलाइक करता हूं क्योंकि इनमें केवल शरीर की श्रेष्ठता प्रदर्शित होती है।
खेल किसी को स्टार बना सकते हैं वह उसी प्रकार है जैसे कोई सम्राट बनता है कोई चक्रवर्ती सम्राट बनता है लेकिन बहुतों को हराकर ही बनते हैं ।बहुत सारे राजाओं को हराकर ही राजा चक्रवर्ती बने हैं। कितनी प्रजा को नष्ट कर दिया ,फसलें रौंद डालीं कितने परिवार तबाह कर दिए तब महाराज चक्रवर्ती श्रीमान जी सिंहासन पर बैठे हैं ।खेल में विजई होना या कुछ खेल की चतुराई या आने का अर्थ यह नहीं है कि वह व्यक्ति भगवान हो गया या वह व्यक्ति दूसरों से अधिक बुद्धिमान हो गया।
बुद्धिमत्ता दिखानी है तो अध्ययन के क्षेत्र में आइए ।शरीर के लिए व्यायाम करें उतना ही जितना जरूरी है ।खेल स्वयं का और पूरे संसार का समय नष्ट करने की साजिश है। फिलहाल तो नए समय में यह साजिश नाकाम होती दिखती है ।मैं खेल को उसी रूप में देखता हूं जैसे पुराने जमाने के स्टेडियम में बैठे राजा लोग रानियों सहित राजकुमारियों सहित पहलवानों का युद्ध देखते थे और सारे पहलवानों के मर जाने का इंतजार करते थे जो बचता था उससे उस निरीह राजकुमारी का पकड़कर विवाह कर दिया जाता था भले ही उसकी इच्छा हो या ना हो। मैं खेलों से घृणा करता हूं और यह मेरा अपना विचार है जो सहमत ना हो वह खुद खेले जमके खेले अपना जीवन बर्बाद करें आबाद करें मुझे क्या फर्क पड़ता है यह मेरे अपने विचार हैं।