जजमेंटल हों या न हों -©डॉ आनंद प्रदीक्षित
जजमेंटल क्यो न हों
©डॉ आनंद प्रदीक्षित
नए जमाने के नए समाज ने एक नई बात गढ़ ली है पिछले 10 15 वर्ष में "डोंट जज मी इट्स माय लाइफ इट्स माय बॉडी" इत्यादि।श्रद्धेय दीपिका पादुकोण और आदरणीय प्रातः स्मरणीय काळजी कोचीन जैसी अभिनेत्रियों और मॉडल्स ने बढ़-चढ़कर इस अभियान में हिस्सा लिया है ।यहां मैं नारी सशक्तिकरण पर कुछ नहीं कहने जा रहा हूं ।मैं बात कर रहा हूं सामान्य रूप से किसी को जज करने या ना करने की ।
बेटे आप लोग स्पष्ट समझ लीजिए कि कुछ मामलों में हमें या आपको किसी को भी जज करने का कोई अधिकार नहीं है और कुछ मामलों में हमें किसी को भी जज करने का पूरा अधिकार है।
वे मामले जिनमें हमें जज नहीं करना चाहिए निम्न प्रकार से हैं -
जब किसी के जीवन का हमारे ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा हो, किसी की दिनचर्या हमें प्रभावित ना कर रही हो ,किसी के विचार हमें हानि लाभ न पहुंचा रहे हो ,किसी की जीवन शैली हमें हमारे परिवार को सकारात्मक या नकारात्मक रूप से प्रभावित ना कर रही हो, किसी के कृत्य समाज के लिए कोई योगदान ना दे रहे हो अर्थात उसके कृत्य अकार्य की श्रेणी में आते हैं, जैसे कोई दिन भर सोता है, जैसे कोई नौकरी नहीं करता ,जैसे कोई 3 दिन नहीं नहा रहा था ,जैसे कोई मोटा है पतला है काला है गोरा है पीला है हरा तो होता नहीं 😊इत्यादि।
किसी के बाल कर्ली हैं किसी के सीधे हैं कोई सुंदर है कोई बदसूरत है कोई ठीक से बोली नहीं बोल पाता इत्यादि।
इन सब से हमें क्या मतलब ?यहां पर हमें जजमेंटल होने की आवश्यकता नहीं है ।
वे मामले जहां हमे जजमेंटल होना पड़ता है --
यदि किसी की जीवन शैली से, किसी के विचारों से सार्वजनिक प्रभाव पड़ता हो ,समाज पर कुछ नकारात्मक प्रभाव पड़ता हो, तो हमें जजमेंटल होने का पूरा हक है ।भारत की किसी महान कन्या के वस्त्रों से यदि लोग आकर्षित होकर एक्सीडेंट कर देते रहे हो तो होना ही पड़ेगा। जैसे कि आगरा में कलेक्ट्रेट के आगे वाले मोड़ पर एक पोस्टर लगा हुआ था 1988 में जो अश्लील ही कहा जा सकता है ।उसके ठीक सामने रेलवे लाइन का पुल था और 90 अंश पर का मोड़ था अभी भी होगा। उस मोड़ पर मुड़कर हम सदर बाजार की सड़क पर जाया करते थे ।बहुत से वाहन चालक एक्सीडेंट कर बैठते थे क्योंकि इतना उत्तेजक पोस्टर विज्ञापन का लगा हुआ था ।आखिर जनहित याचिका दायर हुई और उस पोस्टर को हटाने के आदेश दिए गए। अदालत जब निर्णय देते हैं तो वे जजमेंटल ही होती हैं क्योंकि वे जजमेंट देती हैं ।
कई वाहन चालक उस समय बुरी तरह दुर्घटनाग्रस्त हुए क्योंकि वह उस से निगाह नहीं हटा पाते थे। तब तक मोड़ आ जाता था। अब ऐसे में आप कहिए के उन भारत की महान नारी के प्रति जजमेंटल ना हुआ जाए और उनको अत्यंत सात्विक दृष्टि से देखा जाए ,यह किसके लिए संभव था?
जजमेंटल होना पड़ता है जब कोई सरेआम गाली दे रहा हो अश्लील बातें कर रहा हूं।
जजमेंटल होना पड़ता है जब कोई हमारे घर के बच्चों को हमारे परिवार की स्त्रियों को भड़का रहा हो उन्हें गलत रास्ते पर ले जा रहा हो।
सार्वजनिक रूप से कोई फेसबुक या यूट्यूब अथवा किसी अन्य सोशल मीडिया पर ऐसी पोस्ट कर रहा हो जिससे समाज को हानि होने की संभावना है तो जजमेंटल होना ही पड़ेगा ।
यह क्या बात हुई कि आप कुछ भी करते रहो, हम जजमेंटल न हों।
आप मेंटल हो चुके हो हम जजमेंटल न हों।
हमें किसी के रूप रंग से कोई परेशानी नहीं है किसी के वर्ण जाति भाषा लिंग जन्म स्थान धर्म संप्रदाय से कोई परेशानी नहीं है हम किसी धर्म जाति आदि के लिए जजमेंटल नहीं है लेकिन यदि सांप्रदायिक विद्वेष कोई फैलाएगा तो उसके लिए जजमेंटल होना पड़ेगा ।उसका विरोध अवश्य करना चाहिए इसलिए जजमेंटल होना कोई वस्तुनिष्ठ घटना नहीं है यह पूर्णतया व्यक्ति निष्ठ है और परिस्थिति जन्य है ।हम किसी एक बात पर किसी परिस्थिति में जजमेंटल हो सकते हैं और किसी परिस्थिति में नहीं ।बहुत से मामलों में जिनमें लोग जजमेंटल होते हैं आपको नहीं होना चाहिए कुछ ऐसे शब्द नहीं बोलना चाहिए जैसे किसी को मोटा कहकर अपमानित करना काला कलूटा कहकर अपमानित करना या टकला आदि कहकर अपमानित करना ।इसी प्रकार शरीर के अंग भंग पर किसी को अपमानित करना अंधा लंगड़ा लूला आदि अपमानजनक ढंग से कहना यह जजमेंटल होना है ,और निंदनीय है ।इसी प्रकार किसी जाति विशेष पर कहावत कहना यह उस जाति के लिए जजमेंटल होना है ।किसी धर्म विशेष को बुरा भला कहना आदि जजमेंटल होना है ।यह नहीं होना चाहिए ।हम होते कौन हैं किसी के खिलाफ कोई फतवा जारी करने वाले। हम कोई अदालत नहीं है कोई संस्था नहीं है ।अपने काम से काम रखना चाहिए ।लोगों के नाम के पहले अपमानजनक विशेषण नहीं जोड़ने चाहिए किंतु समाज में गलत बातें फैलाने वालों के लिए विरोध का स्वर अवश्य उठाना चाहिए और उसका विरोध शालीनता पूर्वक करना चाहिए ।यहां जजमेंटल होना पड़ेगा और यह होना जाएज़ होगा क्योंकि जब किसी के आचार व्यवहार का प्रभाव समाज पर यह हमारे परिवार पर पड़े तो हमें उसके विरुद्ध खड़े होना पड़ेगा। और यह होना भी चाहिए ।
हमारी दुनिया किसी दीपिका पादुकोण के फतवों से नहीं चलती है कि वह कहें कि यह मेरा शरीर है मैं चाहे जो करूं चाहे जो पहनूं। बंद कमरे में कुछ भी पहने पर आप सार्वजनिक रूप से अश्लील कपड़े पहनेंगे तो उसके विरुद्ध कहा जाएगा क्योंकि उसका प्रभाव हमारे समाज पर पड़ता है। यह कोई हमारे बुरे संस्कार नहीं है पुरुष जाति के कि वह ऐसे कपड़ों से आकर्षित होते हैं। मर्द हैं तो स्त्री से तो आकर्षित होंगे ही ,कि किसी मेज़ कुर्सी से आकर्षित होंगे? मर्द शालीन संस्कारी हो और वे ?टेस्टोस्टेरोन तो एस्ट्रोजन को देखेगा ही वरना ऑक्सिटोसिन का क्या काम बचेगा?धर्म अर्थ काम मोक्ष में से काम तो गया फिर काम से। 😊
यह बात अलग है कि उनको स्त्री पर टूट नहीं पड़ना चाहिए और बलात्कारी नहीं बन जाना चाहिए किंतु यह फैशन मॉडल्स ये भूल जाती हैं इनके द्वारा उकसाये गए मर्द अपने अड़ोस पड़ोस के मासूम बालिकाओं लड़कियों को अपना शिकार बना लेते हैं ये इन का समाज के प्रति सबसे बड़ा अपराध और पाप है। कभी ना कभी कोई ना कोई अदालत इस बात पर फैसला जरूर देगी कि कपड़ों में शालीनता होनी चाहिएऔर शरीर दिखाने का क्षेत्रफल और स्थान भी अदालत तय कर ही देगी