मेरा जीवन ,आनंद पूर्ण जीवन -डॉ आनंद प्रदीक्षित
Updated: Apr 11, 2021
मेरी जीवन शैली !हालाँकि ये मेरी पत्नी और मेरे भाई की जीवन शैली से विपरीत है पर मुझे कोई समस्या नहीं हुई और वो सब मिला जो लाखों लोगों के लिए अप्राप्त स्वप्न है यानी सदा टॉपर रहना और पीसीएस में चार सिलेक्शन लगातार (आईएएस की उमर निकल गई थी जब तक सोचा )और आईएएस रैंक से स्वेच्छिक अवकाश और फिर मनपसंद कार्य यानी अध्यापन !समस्या सिर्फ़ तब हुई जब किसी के या परिस्थिति के दबाव में कुछ किया जैसे पीसीएस में बैठना और निकलते चले जाना !मुझे सरकारी तंत्र से घृणा है !
दूसरे मुझे दूर दूर शादी ब्याहों मुंडन कन छेदन आदि में जाना पसंद नहीं तो मुझे यात्रा में कष्ट होता है !जाता हूँ तो एंजॉय भी खूब करता हूँ क्योंकि मनहूसियत फैलाना मुझे नागवार गुजरता है पर मुझे एकांत प्रिय है ।मेरे पिता भी ऐसे थे और मेरा एक पोता भी यही स्वभाव का है !
हम अंतर्मुखी व्यक्ति कोई दुखी व्यक्ति नहीं होते
कुछ लोग सोचते हैं कि लोगों से जुड़ो वे वक्त पर काम आते हैं पर ये बुरा वक्त भी लोगों की ही देन होता है
आप अकेले हैं तो अपनी और ईश्वर कम्पनी में आनंद से हैं
कोई बाहरी नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं कर सकती
रिश्तेदारों की निमंत्रण चेन तोड़िए
आप बुलाएँगे तो वे आएँगे
फिर वे बुलाएँगे तो आपको जाना पड़ेगा
एक आम इंडियन इसे बहुत एंजॉय करता है
पर मैं ईश्वर कृपा से आम नहीं हूँ
पर परिवार समाज का दबाव है तो मानना पड़ जाता है
अनावश्यक यात्रा को जन्म देता है ये रिश्तेदारी चक्र
बुलाइए किसे ?
माता पिता तो हैं ही प्रथम पूज्य
पुत्र पुत्री भाई बहिन के परिवार
कज़िन सीमित करें समधी समधिन तो अपरिहार्य हैं
सबसे बड़ा नातेदार विस्फोट होता है जब आप पुत्र पुत्री भई बहिन की ससुराल में घुस जाते हैं
साले साली जीजा देवर जेठ के परिवार
जीजा का जीजा साले का साला
समधी का समधी फूफा और उसका भी जीजा
उफ़्फ़
अब हर परिवार में प्रति व्यक्ति इतने समारोह होते हैं कि औसतन
जन्म के पहले की गोद भराई ,जन्म, छटी ,विवाह के चार फ़ंक्शन ऐनिवर्सरी और देहावसान फिर त्रयोदशी आदि
हम जीवन भर यात्रा करते हैं
इन यात्राओं में गाड़ी कपड़े ज़ेवरों का दिखावा फिर उसके लिए पैसे का इंतज़ाम ,ग़लत तरीक़ों से कमाना ,उसमें व्यस्त रहना ,उसके तनाव फिर तनाव की बीमारियाँ फिर अस्पताल के चक्कर !
आम इंडियन जब इन रिश्तेदारों के यहाँ जाता है तो अगर विदेश यात्रा न की हो तो स्टेटस नहीं बनता
बच्चे विदेश में न हों तो ज़िंदगी बेकार
ग्रेटर नॉएडा में फ़्लैट न हो तो ज़िंदगी मज़दूरी है समझो !
कुंठा हताशा में जीने लगता है आदमी
अपनी ज़िंदगी से लोग कम करिए
सुखी रहेंगे
विश्वास कीजिए लोगों कि ज़रूरत नहीं पड़ेगी
अगर परब्रह्म आपके साथ है
कोरोना युग की यही मांग है
