वैक्सीन और कोविड
जागरण जोश से साभार
भारत में वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले दो कोरोना वायरस वैक्सीन, कोविशील्ड और कोवैक्सिन ने SARS-CoV-2 के B.1.617 वेरिएंट के खिलाफ अपनी प्रभावकारिता दिखाई है, जिसे इंडियन स्ट्रेन' या 'डबल म्यूटेंट' वैरिएंट भी कहा जाता है. कोवैक्सिन का निर्माण भारत बायोटेक द्वारा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के साथ साझेदारी में किया गया है. कोविशील्ड को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा विकसित किया गया है. SARS-CoV-2 के B.1.617 वैरिएंट पर उपलब्ध टीकों की प्रभावशीलता पर एक अध्ययन में, इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) के निदेशक अनुराग अग्रवाल ने यह कहा है कि, टीकाकरण के बाद होने वाला मामूली संक्रमण होता है. इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) एक वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान है जो काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR), भारत का एक हिस्सा है. इस संस्थान की स्थापना वर्ष, 1977 में हुई थी और इसने मुख्य रूप से जैविक अनुसंधान करने पर ध्यान केंद्रित किया था. कोशिकीय और आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी - CCMB), हैदराबाद के एक अध्ययन से यह पता चला है कि, कोविशील्ड कोरोना वायरस के B.1.617 वैरिएंट से सुरक्षा प्रदान करता है.
B.1.617 वैरिएंट को 'डबल म्यूटेंट' या 'भारतीय वैरिएंट' भी कहा जाता है. इस ‘डबल म्यूटेंट’ वैरिएंट में ज्यादा से ज्यादा 15 म्यूटेशन होते हैं, लेकिन दो म्यूटेशन - E484Q और L425R प्रतिरक्षा प्रणाली से बचने की अपनी क्षमता के कारण चिंता का प्रमुख विषय हैं. एक CSIR लैब, इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विनोद स्कारिया ने यह कहा है कि, ये दो उत्परिवर्तन/ म्युटेशन्स, E484Q और L425R व्यक्तिगत रूप से इस वायरस को अधिक संक्रामक बनाते हैं जिससे यह वायरस प्रतिरक्षा प्रणाली से अपना बचाव करता है. महाराष्ट्र में COVID-19 मामलों में 60 डबल म्यूटेंट वैरिएंट का 60 प्रतिशत से 70 प्रतिशत तक पाया गया. कोरोना वायरस महामारी की वर्तमान दूसरी लहर के दौरान COVID-19 मामलों में अचानक वृद्धि का एक कारण यह वैरिएंट भी रहा है.