संज्ञान
किसी आदमी ने लाल रंग कभी नहीं देखा है। न कोई टमाटर लाल दिखा है और न कोई गेंद लाल नज़र आयी है। न कोई गुलाब लाल , न जुराब लाल। उसका लाल रंग की किसी वस्तु से कभी वास्ता ही नहीं पड़ा है। तभी अचानक एक दिन उसे लाल रंग का हैलूसिनेशन होता है। भ्रम से उसकी आँखें एक ऐसा रंग देख लेती हैं , जिसे हम सामान्य लोग लाल कहते हैं। इस व्यक्ति के लिए यह रंग एकदम नया है , इसने इसे पहली बार देखा है। किन्तु लाल रंग को भ्रमवश देख लेने के बावजूद इस व्यक्ति ने चूँकि अब तक किसी लाल वस्तु को लाल नहीं देखा है , यह इस लाल रंग और टमाटर-गेंद-गुलाब-जुराब का सम्बन्ध नहीं जोड़ पाया है। इसने लालिमा को देख लिया है , पर इस लालिमा को पदार्थ के गुणधर्म के रूप में अब-तक नहीं पहचाना है। इस तरह से इस व्यक्ति के लालिमा को अलग से समझने में सफलता पायी है , न कि किसी लाल रंग की वस्तु के माध्यम से।
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"चेतना क्या है ?" यह प्रश्न किसी साधु से पूछने पर जो उत्तर मिलेगा , उसकी यहाँ बात नहीं हो रही। पर यही प्रश्न किसी वैज्ञानिक से पूछने पर या तो वह इसे टालने का प्रयास करेगा अथवा इसके लिए भौतिकी-रसायन की भाषा में पदार्थ के गुणधर्म-सम्बन्धी तथ्य प्रस्तुत करने लगेगा।
किसी भी अनुभव को जब हम महसूस पाते हैं , तब कौन-कौन से रासायनिक बदलाव मस्तिष्क में हो रहे हैं --- उनकी बात नहीं हो रही। बात इसपर चल रही है कि अनुभव अनुभव बनता कैसे है। निर्जीव पदार्थ में ऐसे क्या बदलाव होते हैं , जिससे सजीव अनुभव का जन्म हो जाता है ? सड़ा टमाटर सूँघने और देखने पर सड़ेपन का दृष्टि-घ्राणबोध कैसे केवल रसायनों के आदान-प्रदान से पैदा हो जाता है ? भौतिक बदलावों से चेतना की उत्पत्ति को समझा क्यों नहीं जा पा रहा ? और क्या कभी भौतिकशास्त्री चेतना को समझ पाएँगे ? अथवा हमेशा चेतना का बोध भौतकी की पहुँच से दूर ही रहेगा ?
इन प्रश्नों को महज़ दार्शनिक कहकर हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। ये हैं और पुरज़ोर तरीक़े से मौजूद हैं। चेतना क्या है --- इस प्रश्न को भी जाने दीजिए। पदार्थ क्या है --- यही समझना टेढ़ी खीर लगता रहा है। पदार्थ के गुणधर्म नहीं , पदार्थ-स्वयं। वह पदार्थ जिसे इमानुएल कान्त 'द थिंग इन इटसेल्फ़' कहते हैं। वह पदार्थ जिसे गेलेन स्ट्रॉसन 'हार्ड प्रॉब्लम ऑफ़ मैटर' कहते हैं।
आम तौर पर लोग सोच लेते हैं कि जो कुछ भी भौतिक है ,वह वास्तविक है। पर वास्तविकता क्या है ? लोहा क्या है ? रसायनविद् कहेंगे कि एक धातु है , तत्त्व है। वे लोहे की परमाणु-संख्या और परमाणु-भार बताने लगेंगे। पर ये-सब तो लोहे के गुणधर्म हैं। लोहा स्वयं में क्या है ? इसका उत्तर भौतिकी-रसायनविज्ञान आज नहीं दे पाएँगे।
ब्रह्माण्ड के रहस्य सुलझाने के लिए भौतिकी गणित की शरण में जाती है। पर गणित पदार्थ को नहीं व्यक्त करती , पदार्थ के गुणधर्म को व्यक्त करती है। पदार्थ के अन्तर्सम्बन्ध को प्रकट करती है। दो पिण्डों के बीच आकर्षण किस तरह काम करता है , यह न्यूटन का गुरुत्व-नियम बता देगा। दो आवेशित कणों के बीच के आकर्षण-विकर्षण को कूलम्ब का नियम। पर पिण्ड और कण स्वयं क्या हैं ? इसका उत्तर न्यूटन-कूलम्ब के नियमों से प्राप्त नहीं हो पाता।
जब तक भौतिकी गणित की चेली बनकर पदार्थ को गणितीय भाषा में समझाने का प्रयास करती रहेगी , वह कदाचित् पदार्थ-स्वयं को नहीं जान पाएगी। वह पदार्थ के व्यवहार को जान सकती है , पदार्थ के परस्पर सम्बन्ध को भी समझ सकती है --- पर वह पदार्थ ख़ुद क्या है , नहीं पता लगा सकती। गणित का अवलम्ब ढूँढ़कर पदार्थ को समझना चाहने वाली भौतिकी अपनी गणितीय सीमाओं में बँध गयी है।
आधुनिक विज्ञान के पिता गैलीलियो ने प्रकृति को गणित की भाषा बोलता हुआ बताया था। गणित की संख्याएँ एब्स्ट्रैक्ट हैं , वे वस्तुओं के बीच के सम्बन्ध को प्रकट करती हैं। जोड़ना , घटाना , गुणा करना और भाग देना ऐसे ही सम्बन्ध हैं। ज्यामिति के बिन्दु भी अन्य बिन्दुओं के सापेक्ष स्थिति बताते हैं। ऐसे में भौतिक कण जो व्यवहार करते हैं , उसके हटकर वे क्या हैं --- इसका उत्तर कौन देगा ? क्वॉन्टिटी से हटकर किसी भी वस्तु की व्यक्तिगत अनुभूत क्वॉलिटी का उत्तर दे पाने का काम फ़िज़िक्स कभी कर पाएगी ?
--- स्कन्द शुक्ल की वाल
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