हिंदी लेख 12 अप्रैल 21
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अवैध तरीके से धर्म परिवर्तन के खिलाफ दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से 09 अप्रैल को इनकार करते हुए कहा कि 18 वर्ष से अधिक उम्र का व्यक्ति अपना धर्म चुनने हेतु स्वतंत्र है. सुप्रीम कोर्ट ने काला जादू और जबरन धर्मांतरण को नियंत्रित करने हेतु केंद्र को निर्देश देने के अनुरोध संबंधी याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि 18 वर्ष से अधिक उम्र का व्यक्ति अपना धर्म चुनने के लिए स्वतंत्र है. जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऋषिकेष रॉय की पीठ ने याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता शंकरनारायण से कहा कि अनुच्छेद 32 के तहत यह किस तरह की याचिका है. हम आप पर भारी जुर्माना लगाएंगे. आप अपने जोखिम पर बहस करेंगे. याचिका में कहा गया था कि गरीब, अशिक्षित लोगों का काला जादू और अंधविश्वास का डर दिखाकर धर्म परिवर्तन किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा कि ये याचिका प्रसार के उद्देश्य से दाखिल की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को अपना धर्म चुनने का अधिकार है और देश का संविधान उन्हें ये अधिकार देता है. इस याचिका को वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से दायर किया गया था और इसे न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन ने याचिका पर कड़ी नाराजगी जताई. वहीं बेंच ने याचिकाकर्ता पर भारी जुर्माना लगाने की भी धमकी दी, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली. पीठ ने कहा कि 18 साल से ज्यादा आयु वाले किसी व्यक्ति को उसका धर्म चुनने की अनुमति नहीं देने का कोई कारण नहीं हैं. पीठ ने शंकरनारायण से कहा कि संविधान में प्रचार शब्द को शामिल किए जाने के पीछे कारण है. इसके बाद शंकरनारायण ने याचिका वापस लेने और सरकार एवं विधि आयोग के समक्ष प्रतिवेदन दायर करने की अनुमति मांगी.
जागरण जोश से साभार