हिंदी लेख 14 April 21
हम जानवरों को कितना थोड़ा जान पाए हैं अभी
(मनु जोसफ, पत्रकार और उपन्यासकार )
(साभार हिंदुस्तान )
माई ऑक्टोपस टीचर एक ऐसी फिल्म है, जिसके बारे में मैं पहले से सुनता आ रहा था, बाद में यह फिल्म ऑस्कर पुरस्कार की दौड़ में शामिल की गई। यह फिल्म मानवविज्ञान का एक सुंदर काम है। यह फिल्म एक नायाब विवरण है, जिसमें एक आम ऑक्टोपस की जीवनी समझाने की कोशिश की गई है। लेकिन वास्तव में यह फिल्म हमारे अर्थात हम इंसानों के बारे में ही है। हम जो कुछ भी देखते हैं, खासकर जानवरों में, वह सब दरअसल हमारे बारे में ही है।
माई ऑक्टोपस टीचर में क्रेग फोस्टर नाम का नाखुश आदमी है, जिसकी नाखुशी से हम पूरी तरह से वाकिफ नहीं हैं। वह दक्षिण अफ्रीका में अटलांटिक किनारे एक जंगल में शांति पाता है। एक दिन उथले समुद्री जंगल में वह शानदार समुद्री शैवाल और जानवरों के बीच विचरण करता दिखाई पड़ता है। एक आम ऑक्टोपस को वह अपने पास पाता है। पहले वह ऑक्टोपस सावधान दिखता है, लेकिन जब फोस्टर बार-बार उस जगह आने लगता है, तब दोनों दोस्त बनने लगते हैं। फोस्टर लगभग एक वर्ष से भी अधिक समय तक ऑक्टोपस के साथ अपने अनुभवों को कैमरे में कैद करता रहता है। वह ऑक्टोपस पूरे मौके देता है, ताकि फोस्टर उसे दुर्लभ कोणों से देख सके। ऑक्टोपस वैसा ही था, जैसा फोस्टर ने उसे देखा था। पर क्या कोई जानवर उतना ही होता है, जितना हम उसे देख पाते हैं? हमारे देखने से परे भी तो जानवर का कोई पहलू होता होगा? बहरहाल, हमें बहुत अच्छा लगता है, जब हमें किसी जानवर के जज्बात के सुबूत मिलते हैं। मुंबई में आवारा गाय का एक वीडियो है, जो फुटबॉल खेलने वाले लड़कों के एक समूह में शामिल हो जाती है और गेंद को चारों ओर मारना शुरू कर देती है। वह गाय पहले गेंद का पीछा करती है और फिर उस पर कब्जा करने के बाद उसे खोना नहीं चाहती। हम विश्वास करना चाहते हैं कि वह गाय लड़कों के साथ खेल रही है, और महज जुगाली से ज्यादा भी उसकी जिंदगी है। हम ऐसे चोर गिरोहों के बारे में भी जानते हैं, जो भोजन के बदले में पर्यटकों का सामान चोरी करने के लिए बंदरों का इस्तेमाल करते हैं; और हम यह जानकर खुश होते हैं कि बंदर भी अब जानते हैं कि किस तरह चोरी का सामान उन्हें अधिक भोजन दिला सकता है।
हमें वास्तव में यह पता नहीं है कि जानवरों या ऑक्टोपस के दिमाग के अंदर क्या चल रहा है, जिसमें लाखों न्यूरॉन्स हैं। इसलिए अक्सर जब मानव पशु व्यवहार में मानवीय गुणों को देखता है, तो यह विज्ञान की तुलना में आत्म-विश्लेषण अधिक है। उदाहरण के लिए, हम अल्बाट्रोस की एकरसता की प्रशंसा करते हैं, जो कि पहले के विचार के समान एकांगी नहीं है। हम डॉल्फिन की चिकित्सकीय शक्तियों के मिथक पर विश्वास करते हैं कि उनके साथ तैरना शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों, यहां तक कि आत्मकेंद्रित या कमजोर बच्चों व लोगों के लिए फायदेमंद होता है। इस बात की चर्चा हर बार होती है कि जब प्राकृतिक आपदा आती है, तब जानवर कैसे चतुराई से बच जाते हैं। कुछ लोग यह कहना पसंद करते हैं कि 2004 की सुनामी ने बहुत कम जंगली जानवरों को खत्म किया था। मनुष्य अपने मृत पालतू जानवरों को गिनते हैं, वन्य जीवों के बारे में कौन जानता है? ये तो ऐसे जीव हैं, जिनसे हम लगातार दूर होते चले जा रहे हैं। प्रसिद्ध वन्य जीव प्रेमी जेन गुडॉल ने भी चिम्पांजी में मानवी गुण देखे थे। वास्तव में, गुडॉल की प्रसिद्धि का एक पक्ष निश्चित रूप से यह दर्शाता है कि उन्होंने चिम्पांजी को कितना पहचाना।
ऐसे देखें, तो हमने कुत्तों को भी शायद गलत समझा है। क्या पता, कुत्ते आपको इसलिए चाटते हों, क्योंकि वे जानते हैं कि अंदर एक हड्डी है? हां, ठीक है, कुत्ते पालतू हो गए हैं, लेकिन यह बहुत हद तक संभव है कि हम उन्हें गलत समझ रहे हैं। शायद इंसान एक महापाषाण प्रजाति है, जो हर चीज में खुद को देखता है। मशीनों और कंप्यूटर में भी हम खुद को देखते हैं। हम बिना पानी वाले ग्रहों पर भी जीवन खोजते हैं। हो सकता है, हर जानवर दूसरे जीव में खुद को देखता हो। हो सकता है, ऑक्टोपस इसलिए फोस्टर के साथ सहज हो गया, क्योंकि उसे लगा कि फोस्टर भी एक लंगड़ा ऑक्टोपस है, जिसके चार पैर गायब हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
